3 महीने से बेटियों को सीने से नहीं लगाया है, मन करता है उनके साथ खेलूं पर ड्यूटी भी जरूरी है, ले चुके हैं हजारों सैंपल - Sahas India News

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3 महीने से बेटियों को सीने से नहीं लगाया है, मन करता है उनके साथ खेलूं पर ड्यूटी भी जरूरी है, ले चुके हैं हजारों सैंपल



ग्वालियर: इस आपदा के दौर में जिला अस्पताल के लैब टेक्नीशियन रवींद्र सिंह के जज्बे को सलाम करने का मन करता है। उनकी दो बेटियां हैं। एक की उम्र 7 साल है, तो दूसरी की सवा साल। तीन महीने बीत गए, उन्होंने बेटियों को सीने तक से नहीं लगाया है।

वह कहते हैं, मेरा भी मन करता है छुट्‌टी लेकर बच्चों के साथ खेलूं, उन्हें घुमाने ले जाऊं, लेकिन फर्ज के आगे परिवार को पीछे करना ही पड़ता है। वह मार्च 2020 से लेकर अभी तक हजारों लोगों के सैंपल ले चुके हैं। हर दिन 8 घंटे PPE किट पहन कर कठिन परिश्रम करना पड़ता है। उन्हें खुशी मिलती है कि आपदा के इस दौर में वह लोगों के कुछ तो काम आ रहे हैं।

जिला अस्पताल मुरार में बतौर लैब टेक्नीशियन रवींद्र सिंह यादव मार्च 2020 से अभी तक सैंपलिंग में भूमिका निभा रहे हैं। यह कोविड सैंपल लेने से लेकर उनकी जांच तक में अहम भूमिका निभाते हैं। सुबह से शाम तक 8 से 10 घंटे इन्हें PPE किट पहनकर रहना पड़ता है। अभी दिन में 41 से 42 डिग्री सेल्सियस पर तापमान है। ऐसे में किट में 15 मिनट में ही पसीना-पसीना हो जाते हैं। बाथरूम न जाना पड़े इसलिए पानी भी नहीं पीते, क्योंकि यह किट सिंगल यूज होती है।

दैनिक भास्कर ने जब रवींद्र सिंह यादव से बात की, तो उन्होंने बताया कि मार्च 2020 से अभी तक वह हजारों सैंपल लेकर जांच चुके हैं। इस काम में सावधानी और धैर्य रखना पड़ता है, आपकी एक चूक दूसरे को खतरे में डाल सकती है।

ड्यूटी और परिवार दोनों को संभालना चुनौती

रवींद्र ने बताया कि परिवार में मां-पिता,पत्नी के अलावा उनकी दो मासूम बेटियां हैं। बेटियों में उनकी जान बसती है, लेकिन कोरोना महामारी के बाद से वह धर्मसंकट में हैं। परिवार को भी संभालना है और इस मुश्किल समय में फर्ज भी निभाना है। यह अपने आप में चुनौती भरा है। इस कारण उन्होंने घर पर एक रूम और बाथरूम अलग कर लिया है। वह घर जाते हैं, तो अपने पोर्शन में ही रहते हैं। वहां खुद को सैनिटाइज करते हैं। नहाकर वहीं खाना खाते हैं। क्योंकि परिवार को भी संक्रमण से दूर रखना है।

बेटियों को खिलाने की इच्छा होती है, पर मन को समझा लेता हूं
ड्यूटी के दौरान कई लोगों के संपर्क में आते हैं, इसलिए सीधे घर जाकर बच्चों या परिवार के सदस्यों से संपर्क करना उनकी जान खतरे में डालना है। बेटियों को खिलाने की इच्छा होती है, पर मन को समझा लेता हूं। तीन महीने से उन्हें गले तक नहीं लगाया। उनकी मां उनको समझा लेती है। जीवनसाथी होने के नाते वह भी मेरा फर्ज पूरा करने में सहयोग करती है। यही वजह है कि मैं नौकरी और परिवार दोनों को संभाल रहा हूं।

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